उत्तर प्रदेश की खैर विधानसभा सीट पर इस बार का उपचुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है। यह पहली बार है जब भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस चुनाव में भाजपा ने जातीय समीकरणों के मकड़जाल को ध्रुवीकरण के जरिए साधने की पूरी कोशिश की है।
बदले हुए समीकरण, जाट बहुल क्षेत्र में सपा का उभार
खैर सीट, जो अलीगढ़ जिले के तहत आती है, जाट बहुल मानी जाती है। यहां इस बार चुनावी समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। 2022 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की उम्मीदवार रहीं चारु कैन अब सपा की ओर से मैदान में हैं। इस सीट पर सपा की 32 साल बाद सीधी एंट्री हुई है। 1992 में सपा की स्थापना के बाद से यह पहला मौका है जब खैर सीट पर सपा का किसी बड़े दल से सीधा मुकाबला है।
तीन-तरफा मुकाबला: भाजपा, सपा और बसपा आमने-सामने
पिछले पांच विधानसभा चुनावों में बसपा ने एक बार जीत हासिल की, जबकि चार बार वह दूसरे स्थान पर रही। इस बार भी बसपा अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश में है। भाजपा ने मौजूदा विधायक सुरेंद्र दिलेर को फिर से मैदान में उतारा है, जो अपनी राजनीतिक विरासत को बरकरार रखने की चुनौती का सामना कर रहे हैं। हालांकि, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अंदरूनी गुटबाजी है, जिसे दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
खैर का भौगोलिक और राजनीतिक परिदृश्य
खैर विधानसभा क्षेत्र हरियाणा के पलवल, गौतमबुद्ध नगर और मथुरा जिलों की सीमाओं से सटा हुआ है। यह क्षेत्र तेजी से विकास की ओर अग्रसर है। यहां भविष्य का 'नया अलीगढ़' विकसित हो रहा है, जिसमें डिफेंस कॉरिडोर, राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय, और ट्रांसपोर्ट नगर जैसे बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। लेकिन इन विकास योजनाओं की जगह जातीय समीकरण इस उपचुनाव में ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं।
भाजपा का ध्रुवीकरण का दांव
जातीय समीकरणों के मकड़जाल को काटने के लिए भाजपा ने ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी रैलियों में ‘बटोगे तो कटेगो, एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ जैसे नारे देकर मतदाताओं को साधने की कोशिश की। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा भी उठाया और कहा कि एएमयू में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए।
स्थानीय गांवों में मतदाताओं की राय
पलवल-अलीगढ़ हाईवे के पास स्थित अर्राना गांव में मतदाताओं की राय बंटी हुई है। यहां ताश खेलते अजय शर्मा का मानना है कि 'फूल' (भाजपा) ही जीतेगा, जबकि मलखान सिंह का कहना है कि सपा को ज्यादा समर्थन मिलेगा। ग्रामीणों के बीच भाजपा, सपा और बसपा के बीच मुकाबला कड़ा होता दिख रहा है।
मिनी छपरौली रही है खैर सीट, बदलते राजनीतिक समीकरण
यह सीट 2012 में सुरक्षित घोषित की गई थी। पहले यह लोक दल का मजबूत गढ़ माना जाता था। 1969 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से महेंद्र सिंह यहां से जीते थे। 1991 में भाजपा के महेंद्र सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती 1996 में भाजपा के टिकट पर विधायक बनीं। रालोद ने 2007 और 2012 में इस सीट पर जीत दर्ज की थी। अब तक इस सीट पर चार बार भाजपा, पांच बार रालोद, एक बार बसपा और पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।
गठबंधन का बदलता समीकरण
इस बार का उपचुनाव गठबंधन की परीक्षा भी लेगा। पिछले चुनाव में सपा और रालोद के बीच गठबंधन था, लेकिन इस बार रालोद भाजपा के साथ है। रालोद के नेता जयंत चौधरी भी भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में रैली करने वाले हैं। वहीं, सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन है, जबकि पहले यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने की संभावना थी।
मुख्यमंत्री और अखिलेश की रैलियों पर नजर
खैर में भाजपा ने चुनावी तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 28 अगस्त को यहां विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को चेक और प्रमाणपत्र वितरित किए थे। इसके बाद 9 नवंबर को उन्होंने यहां रैली कर कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने का संदेश दिया। भाजपा में गुटबाजी को देखते हुए संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह भी 10 नवंबर को अलीगढ़ पहुंचे। अब 15 नवंबर को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैली है और 16 नवंबर को फिर से मुख्यमंत्री योगी का दौरा प्रस्तावित है।
प्रत्याशी और मतदाता प्रोफाइल
इस उपचुनाव में मुख्यतः तीन प्रत्याशी मैदान में हैं:
- बसपा: डॉ. पहल सिंह
- भाजपा: सुरेंद्र दिलेर
- सपा: चारु कैन
कुल मतदाता: 4,02,819
पुरुष मतदाता: 2,15,075
महिला मतदाता: 1,87,644
जातिगत आंकड़े (अनुमानित):
- जाट: 1.5 लाख
- अनुसूचित जाति: 55 हजार
- ब्राह्मण: 70 हजार
- मुस्लिम: 35 हजार
- ठाकुर: 30 हजार
- वैश्य: 20 हजार
- पिछड़े वर्ग: 40 हजार
निष्कर्ष
खैर उपचुनाव में जातीय समीकरण, ध्रुवीकरण और विकास के मुद्दे टकरा रहे हैं। भाजपा, सपा और बसपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा जहां हिंदू ध्रुवीकरण पर जोर दे रही है, वहीं सपा ने मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्गों को साधने की रणनीति अपनाई है। बसपा भी अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश में है। ऐसे में यह उपचुनाव खैर की राजनीति का भविष्य तय करने वाला साबित होगा।