राकेश अग्निहोत्री: सवाल दर सवाल
महिला' बनेगी क्या ' मध्यप्रदेश भाजपा' की पहली ' अध्यक्ष'..!
(विष्णु - हितानन्द क्या 33 प्रतिशत जिलों की कमान महिला नेतृत्व को सौंपने की लाइन तैयार करेंगे)
मध्य प्रदेश भाजपा के लिए पहली महिला प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना पर चर्चाएं तेज हो रही हैं। वर्तमान में भाजपा के सदस्यता अभियान और संगठन पर्व के जरिए पार्टी विभिन्न समुदायों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। इस बीच, महिला नेतृत्व को प्रमुखता देने की बात सामने आ रही है। संघ की हालिया केरल बैठक में 33% महिला आरक्षण के समर्थन के बाद, भाजपा के संगठन में भी महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करने की दिशा में कदम बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है।
महिला नेतृत्व का महत्व
भाजपा में कई प्रमुख महिला नेता हैं, जिन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। पार्टी ने देश को महिला मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, और राष्ट्रपति तक दिया है, लेकिन अब तक किसी महिला को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय नहीं लिया गया है। संगठनात्मक स्तर पर अब समय आ गया है कि पार्टी महिला नेतृत्व को प्रदेश की कमान सौंपकर एक बड़ा संदेश दे।
महिला नेतृत्व के दावेदार
मध्य प्रदेश में कई संभावित महिला नेता हैं, जो प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो सकती हैं:
- कविता पाटीदार – राज्यसभा सांसद और मालवा क्षेत्र की प्रमुख ओबीसी नेता।
- उषा ठाकुर – हिंदुत्व के चेहरे के साथ क्षत्रिय समाज और संघ की पृष्ठभूमि से।
- अर्चना चिटनिस – पूर्व मंत्री और ब्राह्मण समुदाय की प्रमुख नेता।
- संध्या राय – भिंड से तीसरी बार सांसद और प्रदेश उपाध्यक्ष।
- संपत्तिया उइके – आदिवासी नेता और पूर्व मंत्री, जो छिंदवाड़ा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी हैं।
भविष्य की रणनीति
संघ और भाजपा नेतृत्व द्वारा महिला आरक्षण का समर्थन लंबे समय की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश भाजपा संगठन महिला नेतृत्व को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बैठाकर एक नई शुरुआत करेगा। इससे पार्टी न केवल महिला आरक्षण के मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता दिखा सकती है, बल्कि आधी आबादी को नेतृत्व के ऊंचे पदों तक पहुंचाने का साहस भी कर सकती है।
चुनौतियां और अवसर
हालांकि महिला प्रदेश अध्यक्ष का मुद्दा अभी चर्चा में है, लेकिन इसे लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। जातीय और सामाजिक समीकरणों के साथ पार्टी के अंदर नए नेतृत्व को स्वीकार करने की चुनौती भी है। लेकिन भाजपा का इतिहास दिखाता है कि पार्टी अपने फैसलों से चौंकाती रही है। यदि मध्य प्रदेश भाजपा में महिला नेतृत्व को आगे बढ़ाया जाता है, तो यह न केवल राज्य के लिए बल्कि देशभर में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
मध्य प्रदेश भाजपा में महिला प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला पार्टी के लिए ऐतिहासिक हो सकता है। हालांकि यह अभी दूर की कौड़ी लग सकता है, लेकिन संघ और भाजपा की महिला आरक्षण पर प्रतिबद्धता को देखते हुए, यह चर्चा अब केवल संभावना तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
मध्यप्रदेश में क्या भाजपा किसी महिला राजनेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी... संगठन की कमान क्या किसी महिला को भाजपा द्वारा सौंपी जा सकती है..
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष यदि कोई महिला तो नेतृत्व के दावेदार कौन..आखिर क्यों इनमे कितने सक्षम.. स्वीकार्य ,उपयोगी और भरोसेमंद साबित हो सकते.. सवाल क्या लंबी पारी खेलने के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव क्या अपनी बिरादरी के दूसरे अनुभवी समकालीन नेताओं की तुलना में क्या आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी महिला को प्रदेश की पहली अध्यक्ष बनवाने में विशेष रुचि ले क्या हाई कमान से आग्रह या उस पर दबाव बनाएंगे..भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व और उसके नीति निर्धारक क्या देश के आधे राज्यों में यदि अघोषित तौर पर ही सही महिला अध्यक्ष का क्राइटेरिया पार्टी स्तर पर सुनिश्चित करेंगा.. तो क्या मध्य प्रदेश में यह काम विष्णु दत्त और हितानंद शर्मा 33% जिलों में किसी महिला को जिला अध्यक्ष बनाकर बड़ा सियासी संदेश दे सकते हैं.. यह महत्वपूर्ण और सोचने को बाधित करने वाला सवाल इसलिए क्योंकि संघ की केरल बैठक में महिला आरक्षण की पैरवी उसका समर्थन यदि उसकी दूरगामी रणनीति का हिस्सा तो क्या इसका आगाज मध्य प्रदेश से और यहां नया प्रदेश अध्यक्ष भी महिला हो सकता है.. यदि यह बहस मध्य प्रदेश में जोर पकड़ती है तो फिर पिछड़ा आदिवासी दलित , सवर्ण तो वह किस जाति का यह पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा बन सकता है..ये सवाल इसलिए मौजूं और प्रासंगिक है क्योंकि दूरगामी रणनीति पर आगे बढ़ने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जब हाल ही में केरल की बड़ी बैठक में 33 फीसदी महिला आरक्षण के मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की और इसे अपना प्रमुख एजेंडा बताया...तब ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या महिलाओं को सोशल इंजीनियरिंग की आड़ में जातीय समीकरण दुरुस्त करने के उद्देश्य से सिर्फ टिकट देने और चुनाव जिताने तक सीमित रखा जाएगा या फिर उन्हें राज्यों में पार्टी संगठन की कमान सौंपकर एक बड़ा संदेश दिया जाएगा... क्या यह संख्या 33% राज्यों तक ही पहुंच सकती है.. क्या पार्टी के नीति निर्धारक यह स्वीकार करते हैं कि महिला आरक्षण का मुद्दा तभी कारगर साबित होगा जब भाजपा दिल्ली से लेकर कई राज्यों के संगठन में महिला नेतृत्व का नया नेटवर्क तैयार करे...अभी तक सदन में सरकार कई बार महिला आरक्षण की पैरवी करते हुए इस मुद्दे पर बहुत आगे बढ़ चुकी है...लेकिन आरक्षण लागू होने के लिए अभी भी इंतजार जारी है..ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महिलाओं को राजनीति में और सशक्त बनाने की शुरुआत भाजपा अपने पार्टी संविधान में संशोधन कर क्या महिलाओं को बतौर प्रदेश अध्यक्ष जिम्मेदारी सौंपकर करेगी...जब लोकसभा में 33 फीसदी आरक्षण देने का मुद्दा जोर पकड़ रहा है तब क्या भाजपा भी संगठन चुनाव की लाइन को आगे बढ़ते हुए क्या कम से कम आधे राज्यों में आधी आबादी यानि महिलाओं में से किसी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक नजीर पेश कर पाएगी...और क्या इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से संभव है जो हमेशा भाजपा के लिए शुभंकर साबित होता आया है...इस वक्त जब भाजपा संगठन पर्व यानि सदस्यता अभियान के बाद नये राष्ट्रीय और प्रादेशिक अध्यक्ष के चयन से पहले ये सवाल एक बार फिर सियासी गलियारों में गूंजने लगा है... वह बात और है क्या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व फिलहाल दूर की कौड़ी नजर आता है...लेकिन महिला नेतृत्व का मुद्दा गंभीर है और इसे राज्यों में भाजपा की इंटरनल पॉलिटिक्स में नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.. इस वक्त जब आधी आबादी के वोट बैंक पर सभी राजनीतिक दलों की पैनी नजर है तब सवाल यही कि क्या भविष्य में महिला आरक्षण को ध्यान में रखते हुए इसकी जमावट की शुरुआत भाजपा के अंदर प्रदेश अध्यक्ष के रुप में देखने और समझने को मिल सकती है.. जो स्पष्ट संकेत महिला जिला अध्यक्ष तलाशने के साथ उसे तरासने के साथ दे सकता है..तो मध्य प्रदेश का भाजपा संगठन जो दूसरे राज्यों के लिए कई मौकों पर अनुकरणीय उदाहरण और मार्गदर्शन देता रहा है .. क्या इस बार मध्यप्रदेश को पहली महिला प्रदेश अध्यक्ष मिल सकती है.. फिलहाल मध्य प्रदेश भाजपा में पांढुर्णा से इकलौती जिला अध्यक्ष पार्टी की प्रतिनिधित्व करती है.. तो मध्य प्रदेश की मोहन सरकार से लेकर मोदी सरकार के मंत्रिमंडल के प्रतिनिधित्व में महिला नेतृत्व सामने आ चुका है... राज्यसभा में तीन महिला सदस्य तो लोकसभा में 6 महिला सांसद के साथ साथ मध्य प्रदेश विधानसभा में 21 महिला विधायक चुनाव जीत कर पहुंची हैं...इस संख्या ने नये महिला नेतृत्व के परफॉर्मेंस का आकलन करने को मजबूर किया है...राष्ट्रीय राजनीति में अटल- आडवानी का दौर हो या मध्य प्रदेश में शिवराज के मुख्यमंत्री रहते जब महिला नेतृत्व को सामने लाने की कोशिश जारी रखी गई और कई चेहरे राष्ट्रीय राजनीति और राज्य की राजनीति का हिस्सा बने, जिन्हें टिकट दिया गया चुनाव लड़े और बैकडोर एंट्री के जरिए राज्यसभा में भी पहुंचाया गया लेकिन फिर यहीं पर सवाल खड़ा होता है क्या यह अपने दम पर चुनाव जीतने या पार्टी संगठन की मेहनत और मोदी लहर की कृपा में चुनाव जीतकर विधायक सांसद और मंत्री तो बन गईं ..लेकिन अभी भी ये सभी चेहरे क्या नेता बन पाए.. आखिर को कौन जो दूसरों को भी चुनाव जीतने का माद्दा रखती हो.. यह सच है कि जातीय या क्षेत्रीय समीकरण के चलते तो कोई नीति निर्धारकों की पसंद और कांग्रेस के काउंटर के तौर पर कई महिलाओं को पार्टी के बड़े पदों तक पहुंचाकर पद प्रतिष्ठा से नवाजा गया.. लेकिन सवाल यही की चुनाव जीतना और निर्वाचित प्रतिनिधि से आगे क्या इन महिला नेतृत्व में किसी के पास संगठन चलाने की समझ और उसका नेतृत्व करने की काबिलियत है .. क्या गारंटी है कि महिला नेतृत्व दूसरे दूसरे पुरुष नेतृत्व के दावेदार को रास आएगा..तो वो कौन हैं जो दिल्ली की नजर से नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर मोहन सरकार की बढ़ती लाइन के बीच फिट हो सकता है .. आखिर इनमें से कितने में काबिलियत है कि वह भविष्य की भाजपा में खुद को हिट साबित कर सके .. बदलती भाजपा में जब मुख्यमंत्री मोहन सब पर भारी.. मोहन की मुरली की धुन पर सभी मग्न है.. ऐसे में यदि दूसरे महत्वाकांक्षी नेताओं और नए नेतृत्व की होड़ के बीच यदि एक नजर डालें तो कविता पाटीदार जो विष्णु दत्त की टीम की महत्वपूर्ण कड़ी जो राज्यसभा तक पहुंच चुकी है.. उसे मालवा जिसका प्रतिनिधित्व मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव कर रहे तब कविता का भी इसी क्षेत्र से पिछड़े वर्ग का होना क्या उनकी ताकत या फिर नई जमावट में यही उनकी कमजोरी साबित होगा.. दूसरा नाम उषा ठाकुर जो मंत्री नही बन पाईं लेकिन हिंदुत्व के चेहरे के साथ क्षत्रिय समाज और संघ की पृष्ठभूमि कम महत्वपूर्ण नहीं है...तो वहीं पूर्व मंत्री वर्तमान विधायक और पार्टी की प्रवक्ता ब्राह्मण वर्ग की अर्चना चिटनिस को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. संगठन से निकली और दूसरे महिला नेतृत्व और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जिन्हें गुटबाजी के कारण आगे आयोग तक भी जाने का मौका नहीं मिला ऐसी प्रदेश उपाध्यक्ष सीमा सिंह भी इस दौड़ में शामिल हो सकती है.. बशर्ते महिला प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चिंतन मंथन पार्टी के अंदर शुरू हो जाए.. इस दौड़ में आदिवासी विधायक और मंत्री संपत्तियां उइके हो या फिर संगठन से जुड़ी रही सांसद संध्या राय के नाम भी चर्चा में आ सकते हैं..तो सांसद से विधायक बनीं रीति पाठक को विधानसभा की समितियों में स्थान के अलावा अभी तक कुछ बड़ा हासिल नहीं हो पाया...तो सवाल फिर यहीं पर खड़ा होता है राज्यसभा में पहुंचाई गई.. या केंद्रीय मंत्रिमंडल में मोदी की टीम का हिस्सा बनी मध्य प्रदेश की मंत्री.. और मोहन सरकार से लेकर विष्णु दत्त की टीम में मंत्री और पदाधिकारी की भूमिका निभा रही सवाल इन चेहरों ने संगठन और सरकार को ताकत देकर क्या अपनी एक अलग छाप अभी तक छोड़ी है.. मध्य प्रदेश में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रहते हुए लंबी राजनीतिक पारी खेलने वाली सुमित्रा महाजन हो या फिर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जिन्हें भाजपा किसी भी जिम्मेदारी से दूर रखे हुए ..कभी ये दोनो मध्य प्रदेश की सीमा से बाहर भाजपा ही नहीं देश की राष्ट्रीय राजनीति का बड़ा चेहरा बन चुकी है.. सवाल क्या बीजेपी भविष्य की इंटरनल पॉलिटिक्स को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश से महिला नेतृत्व के रुप में नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू करने का जोखिम मोल लगी.. क्या लंबी पारी खेलने मैदान में फ्रंट फुट पर नजर आ रहे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को यह महिला नेतृत्व रास आएगा.. तो क्षेत्रीय और जाति समीकरण में इन महिला नेत्रियों में से कौन सा चेहरा सामने आ सकता है.. मध्य प्रदेश भाजपा के युवा मोर्चा, किसान मोर्चा, महिला मोर्चा कई नए चेहरों को सामने जरूर लाए लेकिन उनकी योग्यता काबिलियत दूरदर्शिता संगठन की समझ और पकड़ के साथ भरोसे की राजनीति में अभी तक शायद ही किसी ने अपनी स्वीकार्यता से आगे अनिवार्यता और उपयोगिता साबित की हो.. तो अब जब भाजपा हर वर्ग जाति समुदाय को सदस्यता अभियान का हिस्सा बनकर महिला वोटरों पर नजर टिका चुकी है, तो देखना दिलचस्प होगा क्या मुख्यमंत्री मोहन यादव और परदे के पीछे संघ के नीति निर्धारक और पार्टी के दूसरे रणनीतिकारों के साथ पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश में महिला नेतृत्व को संगठन की कमान सौंपने पर गंभीरता से विचार कर एक नया उदाहरण पेश करेगा.. क्या यह भाजपा के दूसरे नेताओं नेतृत्व और अध्यक्ष पद के दावेदारों को रास आएगा..या फिर इस बार भी महिला प्रदेश अध्यक्ष का मुद्दा पानी के बुलबुले जैसा ही रह जाएगा... मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के साथ संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा इस मुद्दे पर यदि गंभीर और दूरदर्शी सोच के साथ पार्टी हित में यदि सहमति ना पाते या परदे के पीछे संघ के नीति निर्धारक इसे गंभीरता से आगे बढ़ाते हैं तो यह नामुमकिन भी नहीं है..भाजपा में सदस्यता अभियान के साथ संगठन चुनाव की प्रक्रिया पार्टी संविधान के तहत शुरू हो चुकी है.. तो अभी तक बड़ा संदेश यही निकल कर आया है कि राज्यों में मंडल. जिला और प्रदेश अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया अक्टूबर तक पूरी हो सकती है.. यदि इस प्रक्रिया में 12 15 जिलों में भी यदि महिला जिला अध्यक्ष निर्वाचित होती है तो यह बहस बहुत आगे तक जा सकती है.. संगठन में कई नए प्रयोग और नए कीर्तिमान रचने वाले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं..फिलहाल किसी नए कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष की अटकलों पर लगभग विराम लगने के साथ भाजपा में अब पार्टी संविधान के तहत देश के आधे राज्यों में संगठन के चुनाव और नए प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्वाचन का रास्ता साफ होगा.. भाजपा और संघ नेतृत्व के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं होने की जोर पकड़ रही चर्चा के दौरान केरल बैठक में संघ पहले ही महिला आरक्षण का खुला समर्थन कर चुका तो मोदी सरकार द्वारा पहले ही संसद में इसे पास कर दिया गया.. मतलब साफ है 33% आरक्षण आधी आबादी महिला के लिए सुनिश्चित करने की दिशा में कदम आगे बढ़ा दिया गया .. ऐसे में सवाल यही पर खड़ा होता है संसद और विधानसभा के अलावा संगठन खासतौर से भाजपा में क्या महिला नेतृत्व की भागीदारी देश के आधे राज्यों या 33% में पार्टी का नया अध्यक्ष किसी महिला चेहरे को बनाने की रणनीति पर भी आगे बढ़ेगा.. फिलहाल यह बहुत दूर की कौड़ी लेकिन इसे बहस को अब नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.. तो ऐसे में सवाल मध्य प्रदेश भाजपा संगठन जो देश में पार्टी नेतृत्व के लिए नए प्रयोग नई नजीर के साथ आदर्श उदाहरण साबित होता रहा .. बड़ा सवाल क्या मध्यप्रदेश को नए नेतृत्व के साथ एक किसी महिला को अध्यक्ष अध्यक्ष बना कर दूरगामी रणनीति के तहत कोई बड़ा संदेश देगा.. जाति.. समुदाय ..वर्ग.. उम्र के मापदंड पर नया या अनुभवी चेहरा जो संगठन में दक्ष हो क्या भाजपा के पास मौजूद है .. क्या वो जोखिम मोल लेगी..तो वह कितना अनिवार्य और उपयोगी खुद को साबित करेगा ...
कविता पाटीदार,उषा ठाकुर,अर्चना चिटनीस,संध्या राय,सीमा सिंह,संपत्तिया उइके,रीति पाठक,सुमित्रा बालमीक,सांसद लता वानखेड़े जैसे कुछ चुनिंदा नामों के अलावा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में कई ऐसे भी महिला चेहरे हैं जो अनुभवी लेकिन पुराने जाने पहचाने हैं..तो कुछ युवा चेहरों की भी चर्चा है..पुराने चेहरों में लंबे समय से सक्रिय लता एलकर,नंदनी मरावी,हिमाद्री सिंह चौहान,वर्तमान राज्यसभा सांसद माया नारोलिया,मप्र सरकार में मंत्री कृष्णा गौर..पूर्व मंत्री मीना सिंह,पूर्व मंत्री रंजना बघेल,नीना विक्रम वर्मा के नाम भी शामिल हैं..भाजपा नेतृत्व अपने फैसलों से हमेशा चौंकाता है तो फिर ये भी कहना बेमानी नहीं होगा कि कुछ नए नवेले चेहरे भी संगठन के इस मुख्य पद पर नजर आ सकते हैं..इनमें सुप्रीत कौर जो महिला मोर्चा की राष्ट्रीय टीम में हैं तो नए और जुझारू चेहरों के तौर पर प्रतिमा बागरी,नेहा बग्गा,भक्ति शर्मा और पूर्व सतना महापौर ममता पांडे के नाम ऐसे है जिन्हें और मौके देखकर भविष्य के लिए संघर्षशील नेतृत्व तैयार किया जा सकता है...इन सबके बावजूद देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा मप्र में महिला नेतृत्व पर दांव क्या लगाती है .. वर्तमान सियासी माहौल को देखते हुए सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं.. सवाल प्रदेश की आधी आबादी को क्या इस बार भाजपा संगठन के प्रमुख पद तक पहुंचने का मौका मिलता है.. तो वह चेहरा कौन होगा..
रीति पाठक
विंध्य में बीजेपी का बड़ा महिला चेहरा
जिला पंचायत से सीधे चुनी गईं सांसद
दो बार सीधी से सांसद,अब विधायक
प्रदेश संगठन में कोई दायित्व नहीं रहा
सीमा सिंह
1994 में की राजनीति की शुरुआत
पूर्व नेत्री सुधा मलैया का रहा संग
महिला मोर्चा में प्रदेशाध्यक्ष तक पहुंची
सत्ता में नहीं मिल सकी भागीदारी
वर्तमान में नर्मदापुरम संभाग का दायित्व
पूर्व सीएम शिवराज की करीबी होने की छाप
संपतिया उइके
महाकौशल में बीजेपी का आदिवासी महिला चेहरा
छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में निभाई अहम भूमिका
आदिवासी होने का मिला लाभ,बनीं सरकार में मंत्री
संगठन में नहीं रहा कोई दायित्व
पांर्ढुना से वैशाली म्हाले नया महिला चेहरा
बनी भाजपा जिला महिला मोर्चा अध्यक्ष
संध्या राय
संध्या राय भिंड से तीसरी बार की सांसद
मोदी—3 सरकार में मंत्री बनने चली चर्चा
चंबल की राजनीति में हैं असरदार नेत्री
प्रदेश संगठन में मिला उपाध्यक्ष का पद
संसदीय समिति में सदस्य हैं संध्या राय
कविता पाटीदार
मालवा में बीजेपी का ओबीसी चेहरा
प्रदेश संगठन में महामंत्री का दायित्व
मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद भी हैं
इंदौर जिला पंचायत की अध्यक्ष भी रहीं पाटीदार
अर्चना चिटनिस
कॉलेज से राजनीति की शुरुआत की
भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहीं
संस्कृति प्रकोष्ठ की प्रदेश संयोजक रहीं
2003 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुईं
उमा और शिवराज के मंत्रिमंडल की सदस्य रहीं
बुरहानपुर से विधायक हैं अर्चना चिटनिस
संगठन में प्रदेश प्रवक्ता का दायित्व
उषा ठाकुर
मालवा में हिंदुत्व का बड़ा चेहरा
शिवराज सरकार में मंत्री रहीं
महू से विधायक हैं उषा ठाकुर
प्रदेश कार्यसमिति सदस्य का दायित्व
संघ का बड़ा महिला चेहरा