बांग्लादेश में भारत की नीति को क्यों बताया जा रहा है नाकाम?

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत आने के 20 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं।

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बांग्लादेश में भारत की नीति को क्यों बताया जा रहा है नाकाम?
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत आने के 20 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं।

बांग्लादेश के मीडिया में हाल ही में भारत की नीति को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत आने के 20 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं। पाँच अगस्त को उनके इस्तीफ़े के बाद देश में विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ, जिसमें शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेताओं और समर्थकों पर हमले हुए थे। साथ ही, अल्पसंख्यकों पर भी हिंसक घटनाएं होने की ख़बरें सामने आईं।

हालांकि, बांग्लादेश की वर्तमान अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया है। रविवार को अपने भाषण में उन्होंने "नए बांग्लादेश" का ज़िक्र करते हुए कहा कि अलग धर्म या अलग राजनीतिक विचार रखने वालों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि हम देश के हर नागरिक को एक परिवार की तरह समझेंगे।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच, बांग्लादेशी मीडिया में भारत की नीति को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कई लोग मानते हैं कि भारत की नीति बांग्लादेश में स्थिरता लाने में नाकाम साबित हो रही है, जिससे इन घटनाओं को और बढ़ावा मिला है।

बांग्लादेश के मीडिया, वहाँ की विपक्षी पार्टी और वर्तमान सरकार में भारत की भूमिका को लेकर बहस हो रही है.

वहाँ के मीडिया में भारत की भूमिका की तीखी आलोचना हो रही है, तो मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख़ हसीना की सरकार में भारत के साथ हुए समझौते को रद्द करने की मांग कर रही है

बांग्लादेश को लेकर भारत की नीति की आलोचना: क्या भारत का समर्थन शेख़ हसीना के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ?

बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार को लेकर भारत की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता अमीर खसरू महमूद चौधरी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि "बांग्लादेश को लेकर भारत की आधिकारिक नीति पूरी तरह से विफल रही है।" उनका मानना है कि भारत की नीतियों पर एक इको सिस्टम का दबदबा था, जिसमें ताक़तवर अधिकारी, रिटायर राजनयिक, विचारक और पत्रकार शामिल थे, जिन्होंने बांग्लादेश की ज़मीनी सच्चाइयों को नज़रअंदाज़ करते हुए केवल सुरक्षा को प्राथमिकता दी।

ख़ालिदा ज़िया, जो बीएनपी की नेता और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री रह चुकी हैं, सत्ता परिवर्तन के बाद जेल से रिहा हो चुकी हैं और अब अंतरिम सरकार में अहम भूमिका निभा रही हैं। कई लोग उन्हें भारत विरोधी नेता के रूप में देखते हैं। अमीर खसरू ने भारत से आग्रह किया कि वह बांग्लादेश में जनता की भावनाओं का सम्मान करे, जो अब शेख़ हसीना के तानाशाही शासन, भ्रष्टाचार और अपराध में संलिप्तता के खिलाफ खड़ी हो रही है।

इसी तरह, ढाका ट्रिब्यून के संपादक ज़फ़र सोभन ने भी भारत की नीतियों की आलोचना की है। अपने लेख में उन्होंने लिखा कि "शेख़ हसीना, जिन्होंने 2008 में भारी बहुमत से जीत हासिल की थी और पिछले एक दशक में देश की बेहतर विकास दर का नेतृत्व किया था, अब लगातार अलोकप्रिय होती जा रही हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि अवामी लीग सरकार के तानाशाही कुशासन और भ्रष्टाचार के कारण जनता में गुस्सा पनप रहा था, और इसके लिए भारत भी बराबर का ज़िम्मेदार है, क्योंकि भारत ने हसीना सरकार का समर्थन किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी वकालत की।

सोभन का मानना है कि भारत ने शेख़ हसीना का समर्थन कर एक ग़लत व्यक्ति पर भरोसा किया और इस नीति के नाकाम होने का अहसास भारत को अब भी नहीं हुआ है। अगर भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंध सुधारने हैं, तो उसे अंतरिम सरकार और बांग्लादेशी जनता दोनों के साथ तालमेल बनाना होगा।

यह सवाल अब ज़ोर पकड़ रहा है कि क्या भारत का शेख़ हसीना का समर्थन बांग्लादेश में उसकी स्थिति को कमजोर कर रहा है? क्या भारत को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है? इस पर आने वाले समय में और भी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं।

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