पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान मिथिला को अलग राज्य बनाने की मांग करके बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। यह मांग उस समय सामने आई जब सदन में मंत्री हरि सहनी और अन्य भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आभार व्यक्त करते हुए संविधान की प्रति को मैथिली भाषा में प्रस्तुत किए जाने की सराहना की।
राबड़ी देवी ने इस मुद्दे पर स्पष्ट कहा, "मिथिला को अलग राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।" उनकी यह टिप्पणी उस समय हुई जब भाजपा के विधायक घनश्याम ठाकुर और संजय मयूख मैथिली भाषा में संविधान की प्रस्तुति को लेकर अपनी खुशी व्यक्त कर रहे थे। राबड़ी देवी की इस मांग को अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषण और संभावनाएं
राजनीति के जानकारों का कहना है कि राबड़ी देवी का यह बयान राजद की क्षेत्रीय राजनीति को मजबूत करने की कोशिश है। मिथिलांचल लंबे समय से एनडीए का मजबूत गढ़ माना जाता है। ऐसे में राबड़ी देवी ने यह मुद्दा उठाकर एनडीए को कमजोर करने और क्षेत्रीय वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की रणनीति अपनाई है।
राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार के मुताबिक, "एनडीए ने मैथिली भाषा में संविधान की प्रति प्रस्तुत करके मिथिलांचल में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। लेकिन राबड़ी देवी का बयान यह दर्शाता है कि राजद ने भी इस क्षेत्र में अपने लिए संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। यह बयान आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले नई राजनीतिक चाल का हिस्सा हो सकता है।"
भाजपा का पलटवार
राबड़ी देवी के बयान पर भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि मिथिलांचल में घुसपैठ बढ़ रही है और मुस्लिम आबादी में इज़ाफा हो रहा है। उनका कहना है कि राबड़ी देवी का यह बयान तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने इसे मिथिलांचल को "इस्लामिक स्टेट" बनाने की साजिश बताया।
भाजपा नेताओं ने यह भी कहा कि राबड़ी देवी का यह कदम सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश है और यह क्षेत्र के विकास से जुड़ी असली समस्याओं से ध्यान भटकाने का प्रयास है।
मिथिला अलग राज्य की मांग का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
मिथिला को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नई नहीं है। यह मुद्दा लंबे समय से मिथिलांचल के लोगों की संस्कृति, भाषा, और पहचान से जुड़ा रहा है। मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद क्षेत्रीय पहचान को लेकर मांगें और तेज हो गई हैं। लेकिन इस मुद्दे पर राजनैतिक दलों के बीच सहमति की कमी इसे बार-बार ठंडे बस्ते में डाल देती है।
राबड़ी देवी के बयान ने एक बार फिर से मिथिला राज्य के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है। अब देखना यह है कि क्या यह बयान सिर्फ चुनावी रणनीति का हिस्सा है या मिथिला को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की दिशा में कोई ठोस पहल होगी।