उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक बार फिर अपने ही कार्यकर्ताओं की मुखालफत का सामना करना पड़ा है। नौ विधानसभा सीटों पर हुए मतदान के बाद मिली जानकारी से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में चिंता की लहर दौड़ गई है। भितरघात की घटनाएं कुंदरकी, कटेहरी और फूलपुर जैसी प्रमुख सीटों पर अधिक देखने को मिली हैं, जो पार्टी की जीत के गणित पर असर डाल सकती हैं।
भितरघात से बढ़ी मुश्किलें
लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव में भी भितरघात भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। पार्टी ने जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी चयन किया था, लेकिन इससे असंतुष्ट कई पूर्व सांसदों, विधायकों और पुराने कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों का विरोध किया।
विशेष रूप से मझवां, कटेहरी, कुंदरकी और सीसामऊ में प्रत्याशी घोषित होने के बाद से ही भितरघात की शिकायतें सामने आने लगी थीं। पार्टी ने इसे रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किया, लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं का असंतोष चुनाव परिणाम पर असर डाल सकता है।
कटेहरी, कुंदरकी और फूलपुर में सबसे ज्यादा शिकायतें
सूत्रों के अनुसार, कटेहरी और कुंदरकी सीटों पर सबसे अधिक भितरघात की घटनाएं हुई हैं। मझवां में तो भाजपा के साथ-साथ सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं ने भी स्थिति बिगाड़ने की कोशिश की। हालांकि, एनडीए के बड़े नेताओं ने इन क्षेत्रों में प्रचार करके स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की मुखालफत पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका।
लोकसभा चुनाव में भी भितरघात का नुकसान
लोकसभा चुनाव में भी भितरघात भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुआ था। पार्टी ने सभी 80 सीटों पर जीत का दावा किया था, लेकिन केवल 36 सीटों पर जीत हासिल कर पाई। इस हार के बाद शीर्ष नेतृत्व में खींचतान और सरकार-संगठन के बीच मतभेद देखने को मिले थे।
अब उपचुनाव के परिणामों को लेकर भी ऐसी ही स्थिति बनने की आशंका जताई जा रही है। अगर अपेक्षित परिणाम नहीं आए, तो पार्टी के भीतर फिर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो सकता है।
भविष्य की चुनौतियां
भाजपा के लिए भितरघात की घटनाएं न केवल तत्कालीन उपचुनाव के लिए चुनौती हैं, बल्कि आने वाले चुनावों के लिए भी खतरे की घंटी हैं। अगर पार्टी समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती, तो इसका प्रभाव आगामी लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है।