प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली के भारत मंडपम में जिला अदालतों की नेशनल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून मौजूद हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि 2019 में सरकार ने फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की स्थापना की थी, जिसमें अहम गवाहों के लिए डिपोजिशन सेंटर्स का भी प्रावधान है। उन्होंने जोर देकर कहा कि डिस्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग कमेटी, जिसमें डिस्ट्रिक्ट जज, डीएम और एसपी शामिल होते हैं, की भूमिका इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है और इन्हें और अधिक सक्रिय किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि महिला अत्याचार से जुड़े मामलों में जितनी तेजी से फैसले होंगे, उतना ही महिलाओं को सुरक्षा का आश्वासन मिलेगा। उन्होंने न्याय में देरी को खत्म करने के लिए बीते एक दशक में किए गए विभिन्न प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर पर लगभग 8 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं, जो पिछले 25 वर्षों की तुलना में 75 प्रतिशत अधिक है।
न्यायपालिका में सुधार की दिशा में उठाए गए कदम
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता के रूप में देश को नया न्याय विधान मिला है। उन्होंने कहा, "इन कानूनों की भावना है- 'Citizen First, Dignity First and Justice First'। हमारे क्रिमिनल लॉ अब शासक और गुलाम वाली कोलोनियल सोच से आजाद हो चुके हैं।"
उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में अदालतों के आधुनिकीकरण के लिए मिशन स्तर पर काम किया गया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कॉन्फ्रेंस के दौरान अगले दो दिनों में लंबित मामलों के प्रबंधन, मानव संसाधन और कानूनी बिरादरी की बेहतरी समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी। इस कार्यक्रम में 'न्यायिक कल्याण' पर एक सत्र भी शामिल किया गया है।
ममता बनर्जी ने भी सख्त कानून की मांग की
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता रेप-मर्डर केस के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग की थी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को 22 अगस्त और 30 अगस्त को इस विषय में पत्र भी लिखा था। 30 अगस्त की चिट्ठी में ममता ने कहा था, "मैंने 22 अगस्त को रेपिस्ट को कड़ी सजा देने के लिए कानून की मांग को लेकर पत्र लिखा था, लेकिन इतने संवेदनशील मुद्दे पर आपकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला।"
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर पीएम का बयान
प्रधानमंत्री ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के 75 साल केवल एक संस्था की यात्रा नहीं हैं, बल्कि यह यात्रा भारत के संविधान और संवैधानिक मूल्यों की भी है। यह यात्रा एक लोकतंत्र के रूप में भारत के और परिपक्व होने की है। भारत के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट पर और हमारी न्यायपालिका पर कभी अविश्वास नहीं किया है।"
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 75 साल भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृतकाल में 140 करोड़ देशवासियों का एक ही सपना है- विकसित भारत, नया भारत। नया भारत, यानी- सोच और संकल्प से एक आधुनिक भारत। हमारी न्यायपालिका इस विजन का एक मजबूत स्तंभ है।
कॉन्फ्रेंस के प्रमुख बिंदु
जिला अदालतों की नेशनल कॉन्फ्रेंस, जो दो दिनों तक चलेगी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित की जा रही है। इस कॉन्फ्रेंस में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जिला अदालतों से 800 से ज्यादा प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।
कॉन्फ्रेंस के पहले दिन अदालतों के इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधन को बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा होगी। जजों की सुरक्षा और कल्याणकारी पहलुओं पर भी विचार-विमर्श होगा। दूसरे दिन केस हैंडलिंग और लंबित मामलों में कमी के लिए रणनीतियों पर चर्चा होगी। इसके लिए केस मैनेजमेंट पर एक सत्र आयोजित किया जाएगा। साथ ही जजों के लिए न्यायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा।
1 सितंबर को कार्यक्रम के समापन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भाषण होगा, जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट के ध्वज और प्रतीक चिह्न का भी अनावरण करेंगी।