मध्य प्रदेश के मंदसौर में स्थित श्री पशुपतिनाथ मंदिर, अपनी अद्वितीय अष्टमुखी शिव मूर्ति के लिए विश्वविख्यात है। इस मंदिर का महत्व आज और भी बढ़ जाता है क्योंकि 20 नवंबर को इसका 64वां प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया जा रहा है। यह दिन मंदिर के इतिहास और धार्मिक परंपराओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस अवसर पर मंदिर में भव्य आयोजन हो रहे हैं, जिसमें 51 हजार लड्डुओं का महाभोग, शाम को आतिशबाजी और महाआरती शामिल है।
दुनिया की अनोखी अष्टमुखी शिव मूर्ति
मंदसौर के इस पावन स्थल पर स्थित शिव की अष्टमुखी मूर्ति को पांचवीं सदी में सम्राट यशोधर्मन के शासनकाल में निर्मित माना जाता है। यह मूर्ति भगवान शिव के जीवन के चार प्रमुख अवस्थाओं का प्रतीक है।
- पूर्व मुख: बाल्यावस्था का प्रतीक
- दक्षिण मुख: किशोरावस्था का प्रतीक
- पश्चिम मुख: युवावस्था का प्रतीक
- उत्तर मुख: प्रौढ़ावस्था का प्रतीक
मूर्ति के अन्य चार मुख अधूरे हैं, जो इसकी अद्वितीयता को और बढ़ाते हैं। इसके आठ मुख भगवान शिव के अष्ट तत्वों – शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव – के प्रतीक हैं।
शिवना नदी में छिपाई गई थी मूर्ति
मूर्ति का इतिहास भी उतना ही रोचक है जितना इसका धार्मिक महत्व। इतिहासकारों के अनुसार, इस मूर्ति को आक्रांताओं के भय से शिवना नदी में छिपा दिया गया था। लगभग 1400 वर्षों तक यह मूर्ति नदी में सुरक्षित रही। 19 जून 1940 को इसे नदी से निकाला गया और अगले 21 वर्षों तक यह पूर्व विधायक बाबू सुदर्शनलाल अग्रवाल के खेत में रखी गई।
मूर्ति की प्रतिष्ठा और मंदिर का विकास
27 नवंबर 1961 को मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी के पावन अवसर पर स्वामी प्रत्यक्षानंद महाराज के करकमलों से इस मूर्ति की विधिवत प्रतिष्ठा की गई। इस ऐतिहासिक आयोजन में मध्य प्रदेश सरकार के योजना और सूचना उपमंत्री सीताराम जाजू सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
1968 में मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित किया गया। इस कलश का वजन एक क्विंटल है और इस पर 51 तोला सोना चढ़ा हुआ है। त्रिशूल पर भी 10 तोला सोने का मंडन किया गया है।
मंदिर की तुलना नेपाल के पशुपतिनाथ से
मंदसौर के श्री पशुपतिनाथ मंदिर की तुलना अक्सर नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर से की जाती है। हालांकि, नेपाल स्थित मूर्ति चारमुखी है, जबकि मंदसौर की मूर्ति अष्टमुखी। यह विशेषता इसे दुनिया में अद्वितीय बनाती है।
प्रतिष्ठा महोत्सव: परंपरा और उत्सव का संगम
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस महोत्सव में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस वर्ष 64वें प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना, महाभोग, महाआरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
श्री पशुपतिनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की अद्वितीय धरोहर है। इसकी पवित्रता और महिमा श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है।
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