भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 4 दिसंबर को एक और ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम करने जा रहा है। इस दिन इसरो यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के सोलर मिशन प्रोबा-3 को लॉन्च करेगा। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम करीब 4 बजे इसे इसरो के विश्वसनीय PSLV रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
क्या है प्रोबा-3 मिशन?
प्रोबा-3, यूरोपीय स्पेस एजेंसी की प्रोबा सीरीज का तीसरा मिशन है। इससे पहले प्रोबा-1 को साल 2001 में और प्रोबा-2 को 2009 में लॉन्च किया गया था। इस मिशन को खासतौर पर सूर्य के कोरोना (Corona) का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है।
प्रोबा-3 की कुल लागत करीब 1780 करोड़ रुपये है और इसकी ऑपरेशनल अवधि 2 साल निर्धारित की गई है। इसे 600 x 60,530 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जहां इसका ऑर्बिटल पीरियड लगभग 19.7 घंटे होगा। इस मिशन में दो उपग्रह शामिल हैं, जो एक-दूसरे से अलग होकर लेकिन सिंक्रोनाइज्ड तरीके से सूर्य के चारों ओर अध्ययन करेंगे।
प्रोबा-3 मिशन के उपकरण और काम
प्रोबा-3 में तीन प्रमुख उपकरण शामिल हैं, जो सूर्य और अंतरिक्ष के मौसम से जुड़ी गहन जानकारी प्रदान करेंगे।
- ASPIICS (कोरोनाग्राफ):
यह उपकरण सूर्य के इनर और आउटर कोरोना के बीच मौजूद गैप का अध्ययन करेगा। इसमें 1.4 मीटर व्यास वाला ऑकल्टर डिस्क है, जो सूर्य से आने वाली तीव्र रोशनी को रोककर उसकी विस्तृत तस्वीरें लेगा। यह ठीक उसी तरह काम करेगा जैसे सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य का बाहरी भाग दिखाई देता है। - DARA (डिजिटल अब्सोल्यूट रेडियोमीटर):
यह उपकरण सूर्य से निकलने वाली कुल ऊर्जा का लगातार मापन करेगा। - 3DEES (3D एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोमीटर):
यह उपकरण अंतरिक्ष के मौसम का अध्ययन करने और उससे जुड़े डेटा को संग्रहित करने में मदद करेगा।
क्यों खास है प्रोबा-3 मिशन?
इस मिशन की सबसे बड़ी खासियत इसका दो उपग्रहों का उपयोग है—ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट (200 किलोग्राम) और कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (340 किलोग्राम)। ये दोनों मिलकर प्राकृतिक सूर्यग्रहण जैसी स्थिति तैयार करेंगे।
जहां एक प्राकृतिक सूर्यग्रहण में वैज्ञानिकों को केवल 10 मिनट तक सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने का मौका मिलता है, वहीं प्रोबा-3 हर दिन करीब 6 घंटे तक यह सुविधा प्रदान करेगा। यह अध्ययन का समय सालाना 50 प्राकृतिक सूर्यग्रहण के बराबर होगा।
दोनों उपग्रह अपनी-अपनी कक्षा में कुछ मिलीमीटर की सटीकता के साथ उड़ान भरेंगे और दिन में एक बार 150 मीटर की दूरी पर आकर सूर्य के कोरोना का विश्लेषण करेंगे।
इसरो और ESA की साझेदारी
प्रोबा-3 मिशन में कई देशों ने सहयोग किया है, जिनमें स्पेन, बेल्जियम, पोलैंड, इटली और स्विट्जरलैंड शामिल हैं। ESA के लिए यह मिशन न केवल सूर्य के अध्ययन बल्कि अंतरिक्ष के मौसम की बेहतर समझ के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
प्रोबा-3 मिशन अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। सूर्य के कोरोना और अंतरिक्ष के मौसम पर विस्तृत अध्ययन न केवल वैज्ञानिकों को नई जानकारी देगा, बल्कि पृथ्वी पर संचार, नेविगेशन और पावर ग्रिड जैसे क्षेत्रों पर सूर्य के प्रभाव को समझने में भी मदद करेगा। इसरो के PSLV रॉकेट से इस मिशन का लॉन्च भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान क्षमता को और मजबूती प्रदान करेगा।