महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव: कांग्रेस ने बीजेपी के ध्रुवीकरण वाले नारे का काट निकाला, आखिरी दो दिन के लिए प्रचार की रणनीति तैयार

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। दोनों राज्यों में 20 नवंबर को मतदान होना है,

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महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव: कांग्रेस ने बीजेपी के ध्रुवीकरण वाले नारे का काट निकाला, आखिरी दो दिन के लिए प्रचार की रणनीति तैयार
कांग्रेस पार्टी के नेता

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। दोनों राज्यों में 20 नवंबर को मतदान होना है, और इसी के साथ सभी राजनीतिक दलों ने अपनी आखिरी कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहां बीजेपी ने ध्रुवीकरण की राजनीति को धार देने की कोशिश की, वहीं कांग्रेस ने इसके खिलाफ एक मजबूत नैरेटिव तैयार किया है। कांग्रेस ने अब आखिरी दो दिनों में मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए एक ठोस प्लान तैयार किया है, जिससे बीजेपी के 'बटोगे तो कटोगे' और 'एक है तो सेफ है' जैसे नारे का तोड़ निकाला जा सके।

महाराष्ट्र चुनाव प्रचार का आखिरी दिन: राहुल गांधी ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस

महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कांग्रेस ने बीजेपी के ध्रुवीकरण के नैरेटिव को चुनौती देने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी के पाँच बड़े वादों को जनता के सामने रखा। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का मकसद था बीजेपी के सांप्रदायिक मुद्दों से हटकर विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना।

राहुल गांधी ने इन वादों के माध्यम से मतदाताओं के बीच कांग्रेस का एक नया नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश की। कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी के इन वादों में महिलाओं, किसानों और बेरोजगारों के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं शामिल हैं:

  1. महिलाओं के लिए हर महीने ₹3000 की आर्थिक सहायता।
  2. फ्री बस यात्रा की सुविधा।
  3. किसानों का ₹3 लाख तक का कर्ज माफ।
  4. सोयाबीन किसानों को ₹7000 प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य।
  5. प्याज किसानों के लिए फेयर प्राइस कमेटी की स्थापना।
  6. कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी।
  7. महाराष्ट्र में जातिगत जनगणना।
  8. ₹25 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर।
  9. बेरोजगार युवाओं को ₹4000 प्रति माह की आर्थिक सहायता।
  10. ढाई लाख सरकारी नौकरियों की गारंटी।

राहुल गांधी ने अपने भाषण में मुंबई के धारावी प्रोजेक्ट का भी जिक्र किया और इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुए बीजेपी की 'एक है तो सेफ है' नीति को चुनौती दी। कांग्रेस की कोशिश है कि अंतिम समय में स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए, जिससे राज्य के मतदाता प्रभावित हो सकें।

महाविकास अघाड़ी में तालमेल की चुनौती

हालांकि, महाविकास अघाड़ी के भीतर कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच तालमेल की कमी की खबरें भी सामने आई हैं। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस को लगता है कि उद्धव ठाकरे की पार्टी ने ज्यादा सीटें तो लीं, लेकिन उनका स्ट्राइक रेट उतना अच्छा नहीं रहा। इससे महाविकास अघाड़ी को नुकसान हो सकता है। वहीं, शिवसेना के नेताओं का मानना है कि राहुल और प्रियंका गांधी ने वायनाड में बहुत ज्यादा समय खर्च किया, जबकि महाराष्ट्र को उनकी ज्यादा जरूरत थी।

झारखंड में भी कांग्रेस के रवैये पर नाराजगी

महाराष्ट्र की तरह ही झारखंड में भी इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A) के भीतर आपसी मतभेद उभर कर सामने आ रहे हैं। झारखंड में कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच गठबंधन है, लेकिन JMM को कांग्रेस के चुनाव प्रचार की रणनीति से निराशा हो रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने झारखंड में प्रचार की अपेक्षा वायनाड उपचुनाव पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। इससे JMM को लगता है कि इससे चुनावी नतीजों पर विपरीत असर पड़ सकता है।

JMM नेताओं का मानना है कि अगर कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार विधानसभा चुनाव की तरह रहा, तो गठबंधन को सरकार बनाने में मुश्किलें आ सकती हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि अंतिम दो दिनों में वह पूरी ताकत झोंक कर राहुल गांधी की थीम और पार्टी की गारंटियों को हर घर तक पहुंचाने की कोशिश करेगी।

कांग्रेस की आखिरी रणनीति: राहुल की थीम और गारंटी को जन-जन तक पहुँचाना

अब जबकि चुनाव प्रचार थम चुका है, कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपनी थीम और गारंटियों को मतदान के दिन यानी 20 नवंबर तक मतदाताओं के बीच पहुँचाना। कांग्रेस की रणनीति है कि राहुल गांधी के संदेश और महाविकास अघाड़ी के वादों को घर-घर तक पहुँचाया जाए, ताकि बीजेपी के ध्रुवीकरण के नैरेटिव को मात दी जा सके।

नतीजों पर टिकी हैं सभी की नजरें

अब सभी दलों की निगाहें 20 नवंबर को होने वाली वोटिंग पर टिकी हैं। चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आएंगे, जिससे यह साफ होगा कि कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी की रणनीति कितनी सफल रही। दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे यह भी तय करेंगे कि बीजेपी के ध्रुवीकरण की राजनीति ने वोटरों को कितना प्रभावित किया है और क्या कांग्रेस अपनी नई गारंटी योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं का समर्थन हासिल कर पाई।