महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज, झांसी में हुए भीषण अग्निकांड के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए चार सदस्यीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है। कमेटी को आगामी सात दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। इस घटना ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी है, क्योंकि आग की चपेट में आकर 10 नवजात बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई और 16 अन्य बच्चे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं।
उप मुख्यमंत्री का दौरा, सख्त कार्रवाई का आश्वासन
घटना की जानकारी मिलते ही उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। घटनास्थल की बारीकी से जांच करने के बाद उप मुख्यमंत्री ने कहा, "इस दर्दनाक घटना के दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।"
चार सदस्यीय जांच कमेटी का गठन
उत्तर प्रदेश सरकार ने तुरंत एक उच्च स्तरीय चार सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी का नेतृत्व चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशक किंजल सिंह करेंगी। इसमें स्वास्थ्य विभाग के निदेशक, विद्युत विभाग के अपर निदेशक और अग्निशमन विभाग की ओर से नामित अधिकारी शामिल होंगे। इस कमेटी को निर्देश दिया गया है कि वह सात दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर शासन को सौंपे।
कमेटी का उद्देश्य केवल आग लगने के कारणों का पता लगाना ही नहीं है, बल्कि किसी भी तरह की प्रशासनिक या तकनीकी लापरवाही की पहचान करना और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए उपाय सुझाना भी है।
आग का कारण: शॉर्ट सर्किट या लापरवाही?
शुरुआती जांच के मुताबिक, आग का मुख्य कारण बिजली के शॉर्ट सर्किट को माना जा रहा है। यह हादसा नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में हुआ, जहां कुल 55 नवजात बच्चे भर्ती थे। आग की चपेट में आकर 10 मासूमों की जान चली गई, जबकि 16 अन्य बच्चों का जीवन संकट में है।
अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही के आरोप
इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन की कड़ी आलोचना हो रही है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अस्पताल में लगाए गए आग बुझाने के उपकरण न केवल पुराने थे बल्कि उनमें से कई एक्सपायर हो चुके थे। इसके अलावा, आपातकालीन अलार्म भी काम नहीं कर रहे थे। यह अस्पताल प्रशासन की भारी लापरवाही को उजागर करता है।
हालांकि, मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा, "अस्पताल में कुल 146 अग्निशामक यंत्र स्थापित हैं, जिनका नियमित रूप से ऑडिट किया जाता है। हादसे के वक्त एनआईसीयू के अग्निशामक यंत्र का भी उपयोग किया गया था, लेकिन आग इतनी तेजी से फैली कि बचाव के प्रयास नाकाफी साबित हुए।"
सरकार ने दिया आश्वासन, बचाव कार्य की प्रशंसा
उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा, "योगी आदित्यनाथ सरकार पूरी तरह से प्रभावित परिवारों के साथ खड़ी है। हमारे डॉक्टर्स और बचाव दल ने बच्चों को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। अस्पताल में फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट और जून में मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया था, जिससे सभी उपकरणों की जांच की गई थी।"
आगे की कार्रवाई और सरकार की सख्ती
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस घटना को लेकर गहरी संवेदना व्यक्त की है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है। सरकार ने सुनिश्चित किया है कि पीड़ित परिवारों को हरसंभव मदद दी जाएगी। साथ ही, इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए प्रदेश के सभी अस्पतालों में जल्द ही एक व्यापक अग्नि सुरक्षा ऑडिट कराया जाएगा।