उत्तर प्रदेश में 13 नवंबर को होने वाले नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच एक महत्वपूर्ण राजनीतिक समझौता हुआ है। कांग्रेस ने इन उपचुनावों में अपने चुनाव चिह्न पर उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। यह निर्णय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद आया। इस फैसले के पीछे कई कारण और संभावनाएं हैं, जो आगामी चुनावी परिदृश्य को प्रभावित कर सकती हैं। आइए इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।
उपचुनाव का पूरा कार्यक्रम और सीटों का विवरण
उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए अधिसूचना 18 अक्तूबर को जारी की गई थी। नामांकन की अंतिम तारीख 25 अक्तूबर है, जबकि नामांकन पत्रों की जांच 28 अक्तूबर को होगी। उम्मीदवार 30 अक्तूबर तक अपने नाम वापस ले सकते हैं। मतदान 13 नवंबर को होगा और नतीजे 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के साथ घोषित किए जाएंगे। इन नौ सीटों में प्रमुख सीटें अलीगढ़ जिले की खैर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, कानपुर नगर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, गाजियाबाद की गाजियाबाद, मिर्जापुर की मझवां, मुरादाबाद की कुंदरकी और मैनपुरी की करहल शामिल हैं।
उपचुनाव की पृष्ठभूमि
2022 के विधानसभा चुनावों में इन नौ सीटों में से चार पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी, जबकि तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा था। शेष दो सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और निषाद पार्टी के उम्मीदवार विजयी हुए थे। इन उपचुनावों की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि कुछ विधायक लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए थे, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कानपुर की सीसामऊ सीट सपा के इरफान सोलंकी के अयोग्य करार दिए जाने के बाद रिक्त हो गई थी।
एनडीए और विपक्षी गठबंधन का समीकरण
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुरुवार को दो सूचियों में कुल आठ उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की, जबकि रालोद को उसकी पुरानी मीरापुर सीट दी गई है। दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' ने सभी नौ सीटों पर संयुक्त रूप से सपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी थी। सपा ने गाजियाबाद और खैर सीट से अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं, जबकि शेष सात सीटों के उम्मीदवार पहले ही घोषित किए जा चुके थे।
सपा-कांग्रेस समझौता कैसे हुआ?
कांग्रेस शुरुआत में उपचुनाव में पांच सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा रखती थी, जबकि सपा ने केवल गाजियाबाद और खैर सीटें कांग्रेस को देने का प्रस्ताव रखा था। फूलपुर सीट पर सपा ने नामांकन दाखिल कर कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी, जिससे गठबंधन में खटास पैदा हो सकती थी। जानकारों के अनुसार, अगर कांग्रेस ने जोर देकर सीट ली होती, तो अल्पसंख्यक समुदाय के बीच गलत संदेश जा सकता था, और इसके अलावा, सपा ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों की तैयारी पहले ही कर ली थी।

कांग्रेस के चुनाव न लड़ने का फैसला और संभावित असर
कांग्रेस के उपचुनाव न लड़ने के फैसले के पीछे कुछ अहम कारण थे। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी के अनुसार, कांग्रेस को जिन सीटों का प्रस्ताव मिला था, वे सीटें उसकी कमजोर सीटें थीं। हाल ही में हरियाणा में हुई हार के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे थे, और उपचुनाव हारने से कांग्रेस के लिए एक और मुश्किल खड़ी हो सकती थी। इसके अलावा, कांग्रेस पर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल नहीं करती। यूपी में सपा एक मजबूत पार्टी रही है, और कांग्रेस इस समझौते के जरिए यूपी में सपा को समायोजित कर रही है ताकि उसे महाराष्ट्र में कुछ सीटें मिल सकें।
यह फैसला कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के लिए निराशाजनक हो सकता है, क्योंकि उपचुनाव में लड़ने से उनका मनोबल ऊंचा रहता और पार्टी का कैडर सक्रिय रहता। हालांकि, 'इंडिया' गठबंधन में कांग्रेस और राहुल गांधी की छवि के लिए यह फैसला सकारात्मक हो सकता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को नाखुश कर सकता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, कांग्रेस का उत्तर प्रदेश के उपचुनाव से किनारा करना एक रणनीतिक कदम है, जो राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच की राजनीतिक समझदारी को दर्शाता है। हालांकि, इसका असर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह 'इंडिया' गठबंधन की मजबूती और भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।