राजस्थान में शादियों का सीजन चल रहा है और हर बार की तरह इस बार भी कई शादियां चर्चा का विषय बन रही हैं। इनमें से एक शादी ने समाज में मिसाल पेश की है। यह शादी है नागौर जिले के नजदीक कुचामनसिटी के पास मकराना तहसील के निंबड़ी गांव में, जहां कांग्रेस विधायक रामनिवास गावड़िया की छोटी बहन त्रिशला का विवाह हुआ।
कांग्रेस और बीजेपी का संगम
त्रिशला का विवाह राजस्थान हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट प्रदीप कुमार से हुआ। प्रदीप के पिता माधोराम चौधरी, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके हैं। इस शादी ने राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी सभी का ध्यान आकर्षित किया।
दहेज प्रथा के खिलाफ मजबूत संदेश
शादी में सबसे खास बात यह रही कि वधु पक्ष की ओर से दहेज के रूप में केवल एक रुपया और नारियल दिया गया। वर पक्ष ने अधिक दहेज लेने से साफ इनकार कर दिया, जबकि वधु पक्ष बड़े स्तर पर दहेज देने की तैयारी में था। माधोराम चौधरी ने कहा,
"हम बेटियों को शिक्षित करने, भ्रूण हत्या रोकने और दहेज प्रथा समाप्त करने जैसे अभियानों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में दहेज लेने का तो सवाल ही नहीं उठता।"
त्रिशला और प्रदीप का परिचय
त्रिशला स्वयं एक सशक्त और आत्मनिर्भर महिला हैं। वे छात्रसंघ चुनाव लड़ चुकी हैं और उनकी खुद की कॉस्मेटिक कंपनी है। वहीं, प्रदीप कुमार राजस्थान हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं और उनकी कानूनी प्रैक्टिस बेहद सफल है।
भव्य समारोह लेकिन सादगी का संदेश
शादी समारोह में दोनों परिवारों ने भव्य आयोजन किया, लेकिन सादगी और अनुशासन का पूरा ध्यान रखा। दुल्हन के पिता, जो जिले के प्रमुख कारोबारी हैं, ने शादी में शामिल सभी मेहमानों के लिए खास इंतजाम किए। खाने का विशेष ध्यान रखा गया ताकि अन्न की बर्बादी न हो।
राजनीतिक और सामाजिक समरसता
इस समारोह में कांग्रेस और भाजपा के कई बड़े नेता शामिल हुए। दोनों पक्षों ने इस विवाह को सामाजिक बदलाव और समरसता का प्रतीक बताया।
शादी को मिली सराहना
बारातियों और घरातियों ने इस शादी की जमकर तारीफ की। वधु पक्ष और वर पक्ष दोनों ने जो सामाजिक संदेश दिया, वह इस शादी को खास बनाता है।
दहेज प्रथा के खिलाफ प्रेरणा
यह शादी समाज में एक मजबूत संदेश देती है कि दहेज प्रथा को खत्म करना संभव है। इसे उन परिवारों के लिए प्रेरणा माना जा सकता है, जो अभी भी इस कुप्रथा का हिस्सा हैं।
निष्कर्ष:
राजस्थान की यह शादी न केवल राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का विषय बनी, बल्कि यह इस बात का उदाहरण भी है कि दहेज प्रथा को नकारकर भी शादियां भव्य और आदर्श हो सकती हैं।